संदेश

नवंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दोहा संकलन

 तितर बितर सा बह गया, पल्लव शीप पराग। बूंद हवा बन उड़ गया, ज्यों डोला मन ढाक।। गागर में न नीर बचा, बचा न मन में पीर। मुख वचन मल धूर बना , दूषण बना शरीर।।

लोहार का न्याय

न्यायप्रक्रिया   हयाती करम था,मिल जो गया। जंबाल दरिया में, खिल जो गया।। तराजू से बनाए अपने तलवार से ही, लोहार का नर्म दिल छिल जो गया। कानूनी चींटे की आंखों में चश्मा। काले में काला शा-मिल हो गया।। झूठे जाली जेब से पैसों के गिरते ही, सत्यवादी का मूंह था,सिल जो गया।। फौजदारी की फ़ौज में चूहिया फ़ौजी, बिल-बिलों से,असमर्थ हिल जो गया।। ~ "असमर्थ"