मेरी दीवाली
मेरी दीवाली
अधिया लेकर,
उन्हारी के लिए..!
ओल तलाशते,
हांफते खुरखुरे गोड़।
नागर की मुठिया पकड़े,
छालेदार हाथ,
कंटीले ढेलों से टकराती,
बिछलती ,
फटी एड़ियां।
निचोड़ते सर्द में
कातिक की कटाई से,
माथे और कखरी से
चू रहे,
कचपच पसीना।
ये तेल की तरह,
रेंग रहे हैं,
किसी दीपक के बाती में।
ताकि बाती का जलना भी।
औरों के लिए,
उजाला बन जाए।
बनिहारी करके,
करखी शाम में,
लौटते मेरे हथेलियों द्वारा।
पिसान से बने दिये का,
जलना।
क्षणिक उजाला लेकर,
मेरे खपरैल को,
राम का आयोध्या बना दिया!
मनीष कुमार "असमर्थ"
उमनिया अमरकंटक अनुपपुर मध्यप्रदेश
6263681015
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें