" प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

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 " प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)"


छिटकती आभा,लाल अंगारा, कोई विस्फोटक है क्या??

या पड़ोस का रहने वाला कोई अपना लोटक है क्या??

शायद सूरज फिसल के इस पार आने वाला है!

उस पार से आ रहा है दुश्मन हो सकता हैं ।

 सैनिको तैयार हो जाओ,

आग का गोला लिया आत्मघाती हमला हो सकता है!! 

 आग फैलाने की हिम्मत भी कर सकता है!

वो उस पार का है, जल रहा है तो जलने दो न!

हमे तो अंधेरों से छुटकारा मिलेगा न!!

यहां लम्बे समय से अंधेरा कायम हैं... 

वो जलेगा तभी उजाला संभव है न! .....


शर्र-शर्र करती आवाज़ तलवार की वेग है क्या??

या फिसलती हवाओं की तेज है क्या??

ये तो हवा है, ये भी पड़ोस के तरफ से ही आ रहा है??

ऐ हवा! अकड़ मत तू अपना रूख बदल दे!

वरना मैं तुमसे क्रुद्ध हो जाऊंगा।

सांसे नहीं लूंगा।

ज़मीन मैंने ही बांटा है। 

ये मेरी मिट्टी है, वो उसकी

तो ये हवा भी बंट गई है न...!!

तेरी हिम्मत कैसे हुई उधर से आने की,

शीतलता नहीं चाहिए मुझे तेरी,

मैं तपता हुआ ही ठीक हूं न!


काला धुआं दिख रहा है, मिसाइल छूट रहे है क्या??

या काले मेघा हैं!जो ठंडे पानी बरसाने वालें है क्या??

बादल ही हैं, बादल जरूर वहां नहीं बरसेंगे..

क्योंकि ये मेरे अपने हैं।

नमीं इसी ने तो दिया है मुझे।

अरे! धोखेबाज तूने वहां बरस ही दिया आख़िर।

तू ऊमस देने वाला है।

तू कीचड़ बनाता है , बाढ़ लाता है!

गद्दार! अपनों से धोखा किया तूने!

चला जा मेरी ज़मीन से, तू दोगला है न???


ये तन बना हैं आग,जल,मिट्टी, पवन और आसमान से क्या??

 तो बोलो न कि राख में भी रहोगे??? समशान तक क्या??

ये देह भी एक सरहद है

इसलिए इसमें नफरत है।

ये किस्सा है किसी सीमा की

मेरे शरीर की तत्वों की वही कहानी है।

मेरा उसका करता रहा हूं

तत्त्वों में बटता रहा हूं।

 लेकिन सत्य कहूं तो मेरा मेरा नहीं है

उसका उसका नही है।।।।।

                      ~ मनीष कुमार "असमर्थ"©®

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