लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम ~ मनीष कुमार "असमर्थ"
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"लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम"
संघर्षी तेरे जीवन की दिशा ही दुर्गम होगी।
सुशांत शिला, तेरी सहन शीलता की क्रम होगी।
अति आविष्ट घाम में, मृग मरीचिका की भ्रम होगी।
छांव तेरे शत्रु होंगे, हवा भी निर्मम होगी।
प्रारब्ध सारा शून्य होगा ,काल भी विषम होंगी।
अत धुन तेरी खुद की होगी ,खुद तेरी सरगम होगी।.
जब विफलता का भय होगा, रगड़ तेरी नम्र होगी।
हृदय तेरा भग्न होगा, शुष्क दृग नम होंगी।
उल्लास तेरी ऋण होंगी, नकारात्मक कदम होंगी।
प्रज्ज्वल प्रकाश में भी, आंखों में तम होंगी।
छिछला जलस्तर भी, चित्त में अगम होगी।।
जब दृढ़ तेरा खिन्न होंगा,अदृढ़ता में सम होंगी।
अत हार को भी जीत, द्रुतशीत ऊष्मगर्म होगी।
नयन नीलिमा होंगी, नाल में नीलम होगी।
तेरी आस कम होंगी, जब लक्ष्यबिंदु चरम होंगी
जैसे निर्णय निकट होगी, वैसे युद्ध क्षद्म होंगी।
उम्मीदें अनंत होंगी , समय अल्पतम होंगी।
करोड़ों उलझनों में , जब तेरी ठोस श्रम होंगी।
डगमगाती कोर में,स्वविश्वास भी परम होंगी।
परित्यागी तो बन , तेरी कार्य ही आश्रम होगी।
तू भागीरथ बन , तेरी गंगा अप्रतिम होंगीं।
सफलता के बाद तेरी, दूसरी जनम होगी।
सुशांत शिला, तेरी सहन शीलता की क्रम होगी।
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