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युवा तन में कलह ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    युवा तन में कलह विद्यमान युवा में, निम्न कलह। व्यस्त अंग में  अप्राकृतिक लय।। डगमगा मन ,  विकंपित ह्रदय।  क्षीण ब्रह्माण्डधुरी (रीढ़) , आकाश गंग रक्त किसलय।। पदगमन पाताल, हस्त गिरी,गिरि मलय। सुख सागर गर्त, दुःख बना हिमालय।। पलकें अपलक,  आंख निरालय। कण्ठ कठोर,  तारुण्य दंत क्षय।। ब्रह्माण्ड भ्रष्ट,  नष्ट श्र्वानेंद्रिय। नीरस रसिका, थमा घ्राणेन्द्रिय।। जननांग अस्थिर, स्थिर मलाशय। मंद ज्वालामुखी, बना पित्ताशय।। विकृत वायुमण्डल,  बना अपच आमाशय। वृक्क में शिला, हुआ यकृत जलाशय।। इस तरुणी तन में,  व्याधि प्रलय। धरणी धड़ में, पल कल्प प्रलय।। ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

समय : "मैं नाग हूं" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

  Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   समय : "मैं नाग हूं" मेरा चाल टेड़ा मेढा है। यदि पलभर पलक झपकाई तो हाथ से निकल जाउंगा। मैं बिना पांव का हूं। कार्यशील सतह में धीमा रहता हूं लेकिन खुरदुरे किनारों से सरपट भाग जाऊंगा। मैं विषैला नाग हूं,  तुम्हारे बालपन को डसकर कब तुम्हे वृद्ध बना दूं आभास नहीं होगा।  मेरे डसने से तुम्हारे नर्म त्वचा कब सिकुड़ कर वृद्ध हो जाएं तुम्हें पता नहीं चलेगा..! मेरे कान नहीं है, सांसों के बीन पे नाचूंगा ये भ्रम कभी मत पालना..! न मै तुम्हारे सुखों के संगीत को सुन पाऊंगा।  न ही तुम्हारे तकलीफों के चीख को। मैं असमर्थ हूं, मैं बिना अस्थि का कोमल देह वाला हूं। न तुम्हारे ताप को नियंत्रित कर पाऊंगा। न तुम्हारे शीत को।  मेरे हाथ न होते हुए भी , मै असीमित कार्य करते हुए,  अकर्मण्य हूं,चिरकाल से निद्रा में हूं। तुम अपनी ज़िम्मेदारी मुझपे मत छोड़ो। मैं सर्वदा से मूक रहते हुए ,  वर्तमान को इतिहास, भविष्य को वर्तमान बनाया है..! मैं मृत्यु का एक अपभ्रंश हूं। मुझे पालतू बनाकर मुझसे मत खेलो। मुझमें इतना गरल है कि अमी...

ये इश्क का शहर नहीं....~ मनीष कुमार "असमर्थ"

   Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   ये इश्क का शहर नहीं..... ये इश्क का शहर नही है... ये तो नफरतों की ऊंची इमारतें..! घृणाओं की चौड़ी सड़कें... चिड़ चिड़ापन लिए हुए ये ट्रैफिक.... हिंसक चौक, आंखे तरेरती भीड़, तनाव में भरे पार्क, खिसियाई बाज़ार... चिक चिक करती वाहनों की आवाज़ गालियां देती नालियों की बास और गुस्सैल बस्तियों से विकसित है। अगर यहां तुमने प्रेम करने का साहस किया..!  तो पन्नियों में बोटी बोटी काटकर  गांव भेज दिए जाओगे...! जहां तुम्हारा गांव.. बरगद के पेड़ के नीचे, चारपाई बिछाकर प्रतीक्षा रत होगी। जहां तुम्हारी मां , सड़क के किनारे,   माथे पर एक हाथ रखे हुए,  तुम्हारे टुकड़ों का इंतज़ार कर रही होगी...! तुम्हारे खेत - खलिहान तुम्हारे कटे हिस्सों के पसीने के प्यासे होंगे..! वो नदियां, वो झरने.. तुम्हारे रक्तरंजित गोश को  नहलाने के लिए, व्याकुल हो रहे होंगे... आम के पेड़ों की डालियां  तुम्हारे अव्यवस्थित अंगो को झूलाने के लिए उत्साहित हो रहे होंगे..! शहर से गर इश्क लेकर गांव गए ,तो टुकड़ों में जाओगे! क्योंक...

मक्खियां......~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   मक्खियां एक लाश के पीछे पड़ी भिनभिनाती मक्खियां। उसके वस्त्रों को नोचकर  निर्वस्त्र करती...! उसके मांस को कुरेदकर लुहुलुहान करती..! सुनसान रास्तों में, बसों में... एक समूह बनाकर, उस अकेली बेचारी लाश को ताकती  ये मक्खियां..! खुशबूदार लाश के रोमकूपों में चढ़कर अपनी बदबूदार काला धब्बा छोड़ती ये मक्खियां..! उसके हाथ , पांव को शक्ति विहीन करके  बाल पकड़कर घसीटती  ये मक्खियां...।  उसके गंतव्य आत्मा को  अपने क्रूरता के चोंच से बार- बार घोपती  ये मक्खियां..! अगले ही दिन अखबारों में... असहाय लाश को चित्त करके  दुष्कर्मी,बलात्कारी शब्द बनकर उभरती.. ये मक्खियां..! असमर्थ हूं मक्खी रोधी दवा बनाने में  ऐसा क्या करूं?? जिससे भाग जाती ये मक्खियां............       ~ मनीष "असमर्थ"