मक्खियां......~ मनीष कुमार "असमर्थ"

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मक्खियां

एक लाश के पीछे पड़ी भिनभिनाती मक्खियां।
उसके वस्त्रों को नोचकर 
निर्वस्त्र करती...!
उसके मांस को कुरेदकर
लुहुलुहान करती..!
सुनसान रास्तों में, बसों में...
एक समूह बनाकर,
उस अकेली बेचारी लाश को ताकती 
ये मक्खियां..!
खुशबूदार लाश के रोमकूपों में चढ़कर
अपनी बदबूदार काला धब्बा छोड़ती
ये मक्खियां..!
उसके हाथ , पांव को शक्ति विहीन करके 
बाल पकड़कर घसीटती 
ये मक्खियां...। 
उसके गंतव्य आत्मा को 
अपने क्रूरता के चोंच से बार- बार घोपती 
ये मक्खियां..!
अगले ही दिन अखबारों में...
असहाय लाश को चित्त करके 
दुष्कर्मी,बलात्कारी शब्द बनकर उभरती..
ये मक्खियां..!
असमर्थ हूं मक्खी रोधी दवा बनाने में 
ऐसा क्या करूं?? जिससे भाग जाती
ये मक्खियां............
      ~ मनीष "असमर्थ"

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