समय : "मैं नाग हूं" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"
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समय : "मैं नाग हूं"
मेरा चाल टेड़ा मेढा है।
यदि पलभर पलक झपकाई तो
हाथ से निकल जाउंगा।
मैं बिना पांव का हूं।
कार्यशील सतह में धीमा रहता हूं लेकिन
खुरदुरे किनारों से सरपट भाग जाऊंगा।
मैं विषैला नाग हूं,
तुम्हारे बालपन को डसकर कब तुम्हे वृद्ध बना दूं आभास नहीं होगा।
मेरे डसने से तुम्हारे नर्म त्वचा कब सिकुड़ कर वृद्ध हो जाएं तुम्हें पता नहीं चलेगा..!
मेरे कान नहीं है,
सांसों के बीन पे नाचूंगा ये भ्रम कभी मत पालना..!
न मै तुम्हारे सुखों के संगीत को सुन पाऊंगा।
न ही तुम्हारे तकलीफों के चीख को।
मैं असमर्थ हूं,
मैं बिना अस्थि का कोमल देह वाला हूं।
न तुम्हारे ताप को नियंत्रित कर पाऊंगा।
न तुम्हारे शीत को।
सांसों के बीन पे नाचूंगा ये भ्रम कभी मत पालना..!
न मै तुम्हारे सुखों के संगीत को सुन पाऊंगा।
न ही तुम्हारे तकलीफों के चीख को।
मैं असमर्थ हूं,
मैं बिना अस्थि का कोमल देह वाला हूं।
न तुम्हारे ताप को नियंत्रित कर पाऊंगा।
न तुम्हारे शीत को।
मेरे हाथ न होते हुए भी ,
मै असीमित कार्य करते हुए,
अकर्मण्य हूं,चिरकाल से निद्रा में हूं।
तुम अपनी ज़िम्मेदारी मुझपे मत छोड़ो।
मैं सर्वदा से मूक रहते हुए ,
वर्तमान को इतिहास,
भविष्य को वर्तमान बनाया है..!
मैं मृत्यु का एक अपभ्रंश हूं।
मुझे पालतू बनाकर मुझसे मत खेलो।
मै असीमित कार्य करते हुए,
अकर्मण्य हूं,चिरकाल से निद्रा में हूं।
तुम अपनी ज़िम्मेदारी मुझपे मत छोड़ो।
मैं सर्वदा से मूक रहते हुए ,
वर्तमान को इतिहास,
भविष्य को वर्तमान बनाया है..!
मैं मृत्यु का एक अपभ्रंश हूं।
मुझे पालतू बनाकर मुझसे मत खेलो।
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