युवा तन में कलह ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

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 युवा तन में कलह


विद्यमान युवा में,
निम्न कलह।
व्यस्त अंग में 
अप्राकृतिक लय।।
डगमगा मन , 
विकंपित ह्रदय। 
क्षीण ब्रह्माण्डधुरी (रीढ़) ,
आकाश गंग रक्त किसलय।।
पदगमन पाताल,
हस्त गिरी,गिरि मलय।
सुख सागर गर्त,
दुःख बना हिमालय।।
पलकें अपलक, 
आंख निरालय।
कण्ठ कठोर, 
तारुण्य दंत क्षय।।
ब्रह्माण्ड भ्रष्ट, 
नष्ट श्र्वानेंद्रिय।
नीरस रसिका,
थमा घ्राणेन्द्रिय।।
जननांग अस्थिर,
स्थिर मलाशय।
मंद ज्वालामुखी,
बना पित्ताशय।।
विकृत वायुमण्डल, 
बना अपच आमाशय।
वृक्क में शिला,
हुआ यकृत जलाशय।।
इस तरुणी तन में, 
व्याधि प्रलय।
धरणी धड़ में,
पल कल्प प्रलय।।

~ मनीष कुमार "असमर्थ"

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