रक्षाबंधन :- प्लीज़ दीदी दीजिए न..!
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रक्षाबंधन :- प्लीज़ दीदी दीजिए न..!
मुझे जाना है परदेश,
हृदय भेंट कर लीजिए न!
अंजुली भर पानी है,
गर प्यासी हैं तो पीजिए न!
कलाई सुनी है मेरी,
रेशम डोरी तो भेजिए न!
लाई हो जो ममता की मिठाई,
प्लीज दीदी दीजिए न!
आपका कड़वा मुंह क्यों है??
आप मुंह मीठा तो कीजिए न!
रक्षास्नेह के आलावा क्या दूं ??
बेरोजगार भाई की तो सोचिए न!
बंजर हुए को हरा आप ही करेंगी।
इस परिवार में पानी सींचिए न!
मुझे सर्दी है और आपका ये नया दुपट्टा!!
प्लीज़ दीदी दीजिए न!
मुठ्ठी में उपहार है..
थोडा सा आंख मूंदिए न!
पिछले साल के आपके बिगड़े फोटो।
वो सारे फ़ोटो देखिए न!
मैं शैतान तो अब भी हूं,
दीदी अब भी कान खींचिए न!
आपका थप्पड़ आज भी है आपके पास,
प्लीज दीदी दीजिए न!
चुपके से फोन लेना अब भी आदत है मेरी..!
मुझसे अब भी खिझिए न!
मैं आपका पैसा फिर से चुराऊंगा..!
पीठ पे धम्म सा पीटिए न!
पापा के पास शिकायत भी करूंगा..।
अब कलमों के बाल भींचिए न!
साल बीते दिखे नहीं, इस रक्षाबंधन में दर्शन।
प्लीज़ दीदी दीजिए न!
(प्रकृति प्रेमी)
अमरकंटक अनुपपुर (मध्यप्रदेश)
अध्ययन - गणित (स्नातकोत्तर)
विद्याध्ययन केंद्र - डा हरीसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय (मध्यप्रदेश)
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