बिछुरने का इज़हार
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आसमां खाली खाली सा है, जमीं खाई बनता जा रहा है ।
आज उनसे बिछुड़ने का जहर, मिठाई बनता जा रहा है।।
मन करता और बहुत मन करता है, पाकीजों को कैद करलू ।
अब तो बढ़ती बढ़ती दूरी ही, परछाईं बनता जा रहा है।।
आंधियों अब अलविदा का वक्त है, मिलेंगे किसी तूफानी में।
नाव तो पत्थर का था ,अचानक ही हवाई बनता जा रहा है।।
कुछ दीदियां मिलीं कुछ दादियां, कुछ भेल मिली कुछ पूरियां।
टूटते कुनबे में वो ठिनगा अब सबका भाई बनता जा रहा है।।
वे रिहायशी ढोल कुछ फटे बांसुरी से थे , सुस्त गरीबों के लिए।
जाने क्यों आज से विलापित शहनाई बजता जा रहा है??
एक ईश्वर की तरह था उनमें से, मेरे तकदीर में नया चांद।
हृदय के फटे चिथड़े किए,घावों में सिलाई पड़ता ही जा रहा है।।
किताबों के कुछ पन्नों में छुपाए रखे थे, बेतरतीब बातें ।
अब तक राई सी थी, अब जाते जाते तराई बनता जा रहा है।
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