निगाहें की निगाहों से शिकायत...!
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निगाहें निगाहों से पूंछ रहीं हैं, कि क्या..?? बात क्या है..?
तुम इंग्लिश टाइप गालियां देने वाले, अब ये हुजरात क्या है..?
निगाहों ने कहा मैं मासिनराम बन,हमेशा बरसती रहती हूं।
तुम तो ठहरे अल-हुतैब के! तुम्हें पता ही नहीं बरसात क्या है?
मुझे याद है जब एक अमावस, तुम और मैं अकेले सड़क पर थे।
अंधेरा था न! तुम जान ही नहीं पाए होगे,वो बीती रात क्या है..?
पलकों से ईशारा करते हो,फिर नज़रे चुरा के भाग भी जाते हो..!
किसी को आंखों का तारा कहते हो,पता भी है मुलाकात क्या है??
निगाहें ने जवाब दिया कसूर मेरा होता है,छूरी दिल पे चल जाती है।
फिर छुप छुप के रोना मुझे पड़ता है , मालूम है मेरे हालात क्या है??
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