ठहराव

 जैसे कमलिनी के पराग में मग्न भौंरा,

सूर्यास्त को भांप नहीं पाया,

और बंद होती पंखुड़ियों ने,

सूर्योदय तक के लिए ठहरा लिया उसे। 

वैसे ही एक कुशुम,

जिसके लाल चुनरी में, 

किनारों पर जड़ी गोटेदार घुंघरू,

छन् छन् छ न न न छन् ,

करते हुए ठप सा कैद कर लिया मुझे।

ठहर जाना अप्राकृतिक तो नहीं!

कोई दरिया ठहर जाता है, 

मीन के परिवार के लिए।

ठहरे हुए डाली की तलाश करती है,

कोई पंछी अपने घरौंदे के लिए। 

स्टेशन आने पर मेरा ठहरना भी,

किसी रेलगाड़ी सा ही था !

ठहर गया.!

जैसे बेरोजगार परदेशी पति,

अपने प्रियतमा के प्रेम में, 

एक दिन के लिए घर में ठहर जाता है!


~असमर्थ

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