एक और केंचुली छूट गया..!

 एक और केंचुली छूट गया..!



वर्षों से पड़े पुराने मील के पत्थरों में।

एक नया पन देखता हूं।

जब भी उस सड़क से गुजरता हूं।

लगता है एक और केंचुली छूट गया।



सोचा मंजिल के पास हूं।

लेकिन पत्थर ने बोल कर कह दिया।

अभी तो दूरी ही तय करो।

दोराहा में एक रास्ते को चुनना होगा।

असमंजस से गुजर जाने पर लगेगा।

निर्मल पानी से काई का सफाई हो गया हो जैसे।




आंगन की तरह स्वच्छ छायादार छोटी सड़क को त्यागकर।

तलाश में पथरीले कच्ची सड़क को अपनाना।

जिससे होते हुए शहर के शुकुन गुजरते हों।

खग शिशु का कठोर आवरण को त्यागने जैसा है।

                                  

                                                          - असमर्थ 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लहराते चुन्नी को बहने दे अपनी।

"नर्मदा के जलधारा की असमंजस्य भाव" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

मेरी चाहत ~ मनीष कुमार "असमर्थ"