इश्क एक खीझ ...!


मैं मांसाहारी हूं.. न?
बार बार कहती थी।
मेरा दिमाग़ मत खाओ!
दिमाग मत चाटो!
मेरा मांस मत नोचो!
मुझे मत पकाओ!
मेरा भेजा फ्राई कर दिए!
मेरा कान खा लेते हो तुम!
मैं जानता हूं कभी तुम्हे प्रेम ही नहीं था मुझसे..!
 फिर भी हड्डी चूसता था!
हड्डी चबाता था!
चुल्लूओं लहू पीता था!
तलवे चाटता था।
बाहें निचोड़ता था।
तुम सच कहती थी।
मैं असमर्थ हूं..!
तुम्हारे योग्य ही नहीं हूं! 
इसलिए अब खुद की किस्मत पे!
दांतो तले उंगली दबाता हूं।
खुद का होंठ चबाता हूं!
दांत पीस कर रह जाता हूं!
याद में मूंह की खा जाता हूं।
अब तो मुझे...
खून का घूंट पीकर रहना पड़ता है।
कोई स्वाद मेरा अंग ही नहीं लगता।
तुम्हारा जान खाने से ही मेरा पेट भरता है।   
                                 ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

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