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"जल का स्वभाव" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    विश्व जल दिवस की शुभकामनाएं....😊 "जल का  स्वभाव" स्वभाव ही है बहना। ऊर्ध्व से अधो की ओर अवनति से उन्नति की ओर आदि से अंत की ओर शून्य से अनंत की ओर स्वभाव ही है मचलना अनियंत्रित इंद्रिय सा भूडोल अधिकेंद्रीय सा मनो उत्केंद्रीय सा प्रवर्तन नवचंद्रिय सा स्वभाव ही है सराबोर करना जैसे गुरुभक्ति से शिष्य हो जैसे प्रियतमा से प्रिय हो जैसे काया से आत्मीय हो जैसे शब्द से वर्तनी हो स्वभाव ही है लहराना धान के बालियों की तरह नागिन के गतियों की तरह रण में खड्ग चलाइयों की तरह अस्थिर परछाइयों की तरह..... ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

काल्पनिक आनंद से लेकर कलम से उम्मीदें ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    काल्पनिक आनंद से लेकर कलम से उम्मीदें  मेरे पंख होते तो मैं भी किसी विरान सुनसान नृत्यशाला में चला जाता जहां चूं चूं करती चिड़ियों के संगीत को सुन पाता!संगीत में जान डालने वाली धुन मिलाती वीणावत उस झरने के झनझनाहट को सुन पाता! पांव में घुंघरू बांधकर नाचती नृत्यांगना मोर और उसकी सहायिका रंगीन नृत्यांगनाओ तितलियों के नृत्य का आनन्द ले पाता! जिनकी थिरकन रुक ही नहीं रही हैं। तबले पे थाप सा बाघ की दहाड़ बहुत ही आकर्षक लग रहा होता! तेज और धीमी गति से आती हवाएं जब पेड़ों और झाड़ियों से टकराती तो मानो लग रहा होता जैसे कोई संगीतज्ञ बांसुरी की धुन से संगीत में अमृत घोल रहा है! हिरणों की झुण्डों की दौड़ से मानो हारमोनियम के धुन निकल रहे होंते जो संगीत में महत्वपूर्ण योगदान देता है। बंदरों का एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर छलांग लगाना जैसे करताल की धुन अंकुरित हो रही होती। और कोयल, खंजन, पपीहा, टिटहरी आदि पक्षियों की आवाज़ें ऐसे लग रही होतीं जैसे कोई अलाप भर रहा हो। इस हृदय मोहित विकसित संगीत संगम जिसका आनन्द ले पाता!     ...

लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम" संघर्षी तेरे जीवन की दिशा ही दुर्गम होगी।  सुशांत शिला, तेरी सहन शीलता की क्रम होगी।  अति आविष्ट घाम में, मृग मरीचिका की भ्रम होगी। छांव तेरे शत्रु होंगे, हवा भी निर्मम होगी। प्रारब्ध सारा शून्य होगा ,काल भी विषम होंगी। अत धुन तेरी खुद की होगी ,खुद तेरी सरगम होगी।. जब विफलता का भय होगा, रगड़ तेरी नम्र होगी। हृदय तेरा भग्न होगा, शुष्क दृग नम होंगी। उल्लास तेरी ऋण होंगी, नकारात्मक कदम होंगी। प्रज्ज्वल प्रकाश में भी, आंखों में तम होंगी। छिछला जलस्तर भी, चित्त में अगम होगी।। जब दृढ़ तेरा खिन्न होंगा,अदृढ़ता में सम होंगी। अत हार को भी जीत, द्रुतशीत ऊष्मगर्म होगी।  नयन नीलिमा होंगी, नाल में नीलम होगी। तेरी आस कम होंगी, जब लक्ष्यबिंदु चरम होंगी जैसे निर्णय निकट होगी, वैसे युद्ध क्षद्म होंगी। उम्मीदें अनंत होंगी , समय अल्पतम होंगी। करोड़ों उलझनों में , जब तेरी ठोस श्रम होंगी। डगमगाती कोर में,स्वविश्वास भी परम होंगी। परित्यागी तो बन , तेरी कार्य ही आश्रम होगी। तू भागीरथ बन , तेरी गंगा अप्रतिम ह...

कहानी एक ठूंठ की ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    कहानी एक ठूंठ की शीत ऋतु ने मेरे तन पे ऐसे प्रहार किया है कि मेरी पत्तियां सूख गईं और मेरे कोमल शाखाये टूट चुकी हैं। अब लोगों ने अपने शब्दकोश में मेरा नाम पेड़ से बदलकर ठूंठ रख दिया है। मैं एक ठूंठ हूं ,( ठूंठ ने कहा) और आगे की कहानी मेरी ही है... शर्दियों का ऋतु बीत चुका है, अब वसंत का पूर्ण काल आ चुका है।जब बसन्त अपने मोहल्ले में होली मना रहा है तब रंगहीन बनकर मैं उसी के सामने अकेला खड़ा हो गया हूं, जब बसन्त प्रसन्नता के प्रवाह में नृत्य कर रहा है, तब मैं हजारों दबावों का बोझ लेकर, कांतिहीन छवि और सूखे होंठ लेकर उसी के सामने खड़ा हो गया हूं, भला कोई ऐसे करता है? कि किसी के पास लंबे वक्त के बाद सुखद क्षण आए और हम ये सोच कर निराश रहें कि इसका तो अच्छा समय आ गया है! मेरा कब आएगा? लेकिन मै निराश हूं! हताश हूं! मेरे प्रसन्नता के सिर को काटकर इस दुर्दिन सर्द ने अलग कर दिया है। केवल मेरे पास मेरा धड़ ही शेष बचा हुआ है,जिसे ही मैं अपनी इस संसार में अपनी वाजुदगी मानता हूं। मेरा एक सवाल खुद से है कि मैं इस अंजान भीड़ में अकेला ह...

" प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    " प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)" छिटकती आभा,लाल अंगारा, कोई विस्फोटक है क्या?? या पड़ोस का रहने वाला कोई अपना लोटक है क्या?? शायद सूरज फिसल के इस पार आने वाला है! उस पार से आ रहा है दुश्मन हो सकता हैं ।  सैनिको तैयार हो जाओ, आग का गोला लिया आत्मघाती हमला हो सकता है!!   आग फैलाने की हिम्मत भी कर सकता है! वो उस पार का है, जल रहा है तो जलने दो न! हमे तो अंधेरों से छुटकारा मिलेगा न!! यहां लम्बे समय से अंधेरा कायम हैं...  वो जलेगा तभी उजाला संभव है न! ..... शर्र-शर्र करती आवाज़ तलवार की वेग है क्या?? या फिसलती हवाओं की तेज है क्या?? ये तो हवा है, ये भी पड़ोस के तरफ से ही आ रहा है?? ऐ हवा! अकड़ मत तू अपना रूख बदल दे! वरना मैं तुमसे क्रुद्ध हो जाऊंगा। सांसे नहीं लूंगा। ज़मीन मैंने ही बांटा है।  ये मेरी मिट्टी है, वो उसकी तो ये हवा भी बंट गई है न...!! तेरी हिम्मत कैसे हुई उधर से आने की, शीतलता नहीं चाहिए मुझे तेरी, मैं तपता हुआ ही ठीक हूं न! काला धुआं दिख रहा है, मिसाइल छूट रहे ह...

"नर्मदा के जलधारा की असमंजस्य भाव" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    "नर्मदा के जलधारा की असमंजस्य भाव" विकास का उल्लास है ये, या वेदना विलास है ये। बहाव का भाव है कि ठगी सी हताश है ये।। नाद या निनाद है ये, शांत या विषाद है ये। क्रोध की ये वेग है, या आंसूओं की तेज है ये।। अलगाव का ये कृंद है, या दो हृदय का द्वंद्व है ये। रीझ है या खीझ है ये, या वियोग की टीस है ये। कंकड़ों की चीर है ये, या तरु की पीर है ये। प्रवाह या प्रवीर है ये, अर्वाचीन या प्राचीन है ये।                              ~ मनीष कुमार "असमर्थ"©®

मेरी चाहत ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "मेरी चाहत"  मेरी चाहत ही बेमिस्ल है, ऐसे ही खिलना चाहता हूं।  हु- ब-हू टिमटिमाता है रात में जो, उसे तोड़ लाना चाहता हूं।.. उसकी एक मुस्कुराहट से ही,टुकड़ों में बिखर जाना चाहता हूं।। मेरी चाहत ही बेढब है, नींद में सपनों से जीतना चाहता हूं। मैं तो अंजुली में रखा कुछ बूंद हूं,या किनारों मे पड़ा कुछ रेत हूं।।,  वो रंग धुरेड़ी सी मैं फागुन सा हूं, वो रंग पंचमी सी मैं मास चैत्र सा हूं। पहली नज़र अंदाज से ही,पल में बह जाना चाहता हूं।। मेरी चाहत ही बेफ़ाइदा है, जवानी में ही ढह जाना चाहता हूं।।  रास्तों में इस ओर कांटों और कंकड़ों के अंबार है। सुदूर है ये मंजिल, तुम्हें आना इस पार है।। ये रास्ते युद्ध से हैं,नुकीले शीशों को वार है। न पहले जीत थी और न अब भी हार है।। उसकी कदमें तो मेरी ओर उठे!! पांव तले कली बनकर बिछ जाना चाहता हूं। मेरी चाहत ही तन्य है, उसकी ओर खिंच जाना चाहता हुं। ओस ने सर्द की कीमत बताई, भाप ने तप्त देह की, सांस ने तन की कीमत बताई,पतझड़ ने पेड़ की  एक बार उसकी तप्त आंखे तो मेरी ओर उठें। भाप-ओस, ...

कलम ने ही तो साथ दिया है ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    "कलम ने ही तो साथ दिया है", -  थके हारे हुए, हताश होकर कई किलोमीटर चलने के बाद जैसे ही अपने कमरे में घुसा! घना अंधेरा, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। किताबें बिखरी हुईं थीं, ए -4 साइज के पेपर फैले हुए थे जैसे ही धोखे से कागजों में पांव पड़ता, खर्र सी आवाज़ आती , दिल से चित्कार हो उठता कि अरे यार मैने विद्या को पांव मार दी! जैसे तैसे संभलते हुए उन कागजों और किताबों के मेले में अपने दोस्त को ढूंढना शुरू किया। ऐसे लग रहा था जैसे भारी भरकम कुंभ के मेले में मेरा दोस्त कहीं खो गया हैं। व्याकुल क्यों न होऊं आखिर वही तो था जिसके वजह से मैं अंधेरे को हटाने वाला था। कभी किताबों की बंडले हटाता ,तो कभी ए-4 साइज के पेपर तो कभी समाचार पत्रों को हटाता और ढूंढ रहा था कि आखिर मेरा मित्र खो कहां गया है?? सुबह यहीं छोड़के तो गया था। बहुत प्रयास करने के बाद थककर बिस्तर के एक पाया को पकड़कर हाथ पांव फैलाकर उसीपे टिक जाता हूं। और उसी को याद करते हुए फर्श पे ही सो जाता हूं नए नवेले सूरज की चमक जैसे ही मेरे आंखों में अचानक पड़ती हैं जंभाई ल...

तितली रानी से मेरा सवाल ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

   Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "तितली रानी सेे मेरा सवाल" तितली रानी तितली रानी, फूल फूल पर जाती क्यों हो? एक फूल ही जन्नत सा था। कुछ रंगों पे गुम जाती क्यों हो? कली-कली पर भौरों के संग,  फूलों पर मंडराती क्यों हो? तुम सुन्दर हो, तुम कोमल हो, पर इतना तुम इतराती क्यों हो? कभी फूल का रस पीती हो। कभी दूर उड़ जाती क्यों हो? कभी आंख से ओझल होकर, अपने पंख दिखाती क्यों हो? कभी मिलेंगे,यहीं मिलेंगे। ऐसा आस जगाती क्यों हो? गेरूए रंग का वेश बनाकर,  घर परिवार बसाती क्यों हो??   चंचलता इतनी है अच्छा! तो फूलों पे रुक जाती क्यों हो? जब तुम्हे पुकारा करता हूं। तो तुम गूंगी बन जाती क्यों हो? तितली रानी तितली रानी, फूल फूल पर जाती क्यों हो? एक फूल जो सूख रहा है। जाने तुम मुरझाती क्यों हो? ~ मनीष कुमार "असमर्थ" ©®