संदेश

रक्षाबंधन :- प्लीज़ दीदी दीजिए न..!

Instagram Facebook page   Quotes   प्रकाशित    रक्षाबंधन :- प्लीज़ दीदी दीजिए न..! मुझे जाना है परदेश,  हृदय भेंट कर लीजिए न! अंजुली भर पानी है, गर प्यासी हैं तो पीजिए न! कलाई सुनी है मेरी,  रेशम डोरी तो भेजिए न! लाई हो जो ममता की मिठाई, प्लीज दीदी दीजिए न! आपका कड़वा मुंह क्यों है?? आप मुंह मीठा तो कीजिए न! रक्षास्नेह के आलावा क्या दूं ?? बेरोजगार भाई की तो सोचिए न! बंजर हुए को हरा आप ही करेंगी। इस परिवार में पानी सींचिए न! मुझे सर्दी है और आपका ये नया दुपट्टा!! प्लीज़ दीदी दीजिए न! मुठ्ठी में उपहार है.. थोडा सा आंख मूंदिए न! पिछले साल के आपके बिगड़े फोटो। वो सारे फ़ोटो देखिए न!  मैं शैतान तो अब भी हूं, दीदी अब भी कान खींचिए न! आपका थप्पड़ आज भी है आपके पास, प्लीज दीदी दीजिए न! चुपके से फोन लेना अब भी आदत है मेरी..! मुझसे अब भी खिझिए न! मैं आपका पैसा फिर से चुराऊंगा..!  पीठ पे धम्म सा पीटिए न! पापा के पास शिकायत भी करूंगा..।  अब कलमों के बाल भींचिए न! साल बीते दिखे नहीं, इस रक्षाबंधन में दर्शन।  प्लीज़ दीदी दीजिए न! ~ मनीष कुमार "असमर्थ...

नर्मदा के प्रारंभिक स्वभाव ' ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram Facebook page   Quotes   प्रकाशित      'नर्मदा के प्रारंभिक स्वभाव ' कृंदन करती आह्लाद विहल, विह्वल सी है ये निश्चेतन। पग पंक बने शिला पंख बने, तपाक सी भागी निष्पतन।। कुटिलता के रोष में राशि बनी, शशि की शीतलता शांत धनी। सिर श्वेतधार, श्याम शिलबेनी  कारूण्य धैर्य, मैकाल सुश्रेंनी  कृष क्रौंच पे बाण लगी तन में, आहात हुई हो युग्म मिलन।। हाथ पसारि नीर भरि लोचन    अभ्याहत भागीं अनाहतन। कृंदन करती आह्लाद विहल, विह्वल सी है ये निश्चेतन। पग पंक बने शिला पंख बने, तपाक सी भागी निष्पतन।। बनी खंजर वेग सी धारा ये, घड़ घड़ ज्यों, वज्रपात घनी।। कपटकोप से काल बनी। ये शांत चंद्र सी बनी ठनी ।। छवि कौंध सी चमकी नयनन में, मरीची की बिंब की तीक्ष्ण किरण। पट भूषण त्याग बनी जोगन, तपाक सी भागी निष्पतन।। कृंदन करती आह्लाद विहल, विह्वल सी है ये निश्चेतन। पग पंक बने शिला पंख बने, तपाक सी भागी निष्पतन।। प्रकृति की अश्रु नीर बनी अंचल में तरु पट बांध चली।  वे शरद में सांस सुहावनी सी। वे ग्रीष्म के आंच में ओढ़नी सी। वे ढाकती मैकल नंदिनी को वे साल के पेड़...

युवा तन में कलह ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    युवा तन में कलह विद्यमान युवा में, निम्न कलह। व्यस्त अंग में  अप्राकृतिक लय।। डगमगा मन ,  विकंपित ह्रदय।  क्षीण ब्रह्माण्डधुरी (रीढ़) , आकाश गंग रक्त किसलय।। पदगमन पाताल, हस्त गिरी,गिरि मलय। सुख सागर गर्त, दुःख बना हिमालय।। पलकें अपलक,  आंख निरालय। कण्ठ कठोर,  तारुण्य दंत क्षय।। ब्रह्माण्ड भ्रष्ट,  नष्ट श्र्वानेंद्रिय। नीरस रसिका, थमा घ्राणेन्द्रिय।। जननांग अस्थिर, स्थिर मलाशय। मंद ज्वालामुखी, बना पित्ताशय।। विकृत वायुमण्डल,  बना अपच आमाशय। वृक्क में शिला, हुआ यकृत जलाशय।। इस तरुणी तन में,  व्याधि प्रलय। धरणी धड़ में, पल कल्प प्रलय।। ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

समय : "मैं नाग हूं" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

  Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   समय : "मैं नाग हूं" मेरा चाल टेड़ा मेढा है। यदि पलभर पलक झपकाई तो हाथ से निकल जाउंगा। मैं बिना पांव का हूं। कार्यशील सतह में धीमा रहता हूं लेकिन खुरदुरे किनारों से सरपट भाग जाऊंगा। मैं विषैला नाग हूं,  तुम्हारे बालपन को डसकर कब तुम्हे वृद्ध बना दूं आभास नहीं होगा।  मेरे डसने से तुम्हारे नर्म त्वचा कब सिकुड़ कर वृद्ध हो जाएं तुम्हें पता नहीं चलेगा..! मेरे कान नहीं है, सांसों के बीन पे नाचूंगा ये भ्रम कभी मत पालना..! न मै तुम्हारे सुखों के संगीत को सुन पाऊंगा।  न ही तुम्हारे तकलीफों के चीख को। मैं असमर्थ हूं, मैं बिना अस्थि का कोमल देह वाला हूं। न तुम्हारे ताप को नियंत्रित कर पाऊंगा। न तुम्हारे शीत को।  मेरे हाथ न होते हुए भी , मै असीमित कार्य करते हुए,  अकर्मण्य हूं,चिरकाल से निद्रा में हूं। तुम अपनी ज़िम्मेदारी मुझपे मत छोड़ो। मैं सर्वदा से मूक रहते हुए ,  वर्तमान को इतिहास, भविष्य को वर्तमान बनाया है..! मैं मृत्यु का एक अपभ्रंश हूं। मुझे पालतू बनाकर मुझसे मत खेलो। मुझमें इतना गरल है कि अमी...

ये इश्क का शहर नहीं....~ मनीष कुमार "असमर्थ"

   Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   ये इश्क का शहर नहीं..... ये इश्क का शहर नही है... ये तो नफरतों की ऊंची इमारतें..! घृणाओं की चौड़ी सड़कें... चिड़ चिड़ापन लिए हुए ये ट्रैफिक.... हिंसक चौक, आंखे तरेरती भीड़, तनाव में भरे पार्क, खिसियाई बाज़ार... चिक चिक करती वाहनों की आवाज़ गालियां देती नालियों की बास और गुस्सैल बस्तियों से विकसित है। अगर यहां तुमने प्रेम करने का साहस किया..!  तो पन्नियों में बोटी बोटी काटकर  गांव भेज दिए जाओगे...! जहां तुम्हारा गांव.. बरगद के पेड़ के नीचे, चारपाई बिछाकर प्रतीक्षा रत होगी। जहां तुम्हारी मां , सड़क के किनारे,   माथे पर एक हाथ रखे हुए,  तुम्हारे टुकड़ों का इंतज़ार कर रही होगी...! तुम्हारे खेत - खलिहान तुम्हारे कटे हिस्सों के पसीने के प्यासे होंगे..! वो नदियां, वो झरने.. तुम्हारे रक्तरंजित गोश को  नहलाने के लिए, व्याकुल हो रहे होंगे... आम के पेड़ों की डालियां  तुम्हारे अव्यवस्थित अंगो को झूलाने के लिए उत्साहित हो रहे होंगे..! शहर से गर इश्क लेकर गांव गए ,तो टुकड़ों में जाओगे! क्योंक...

मक्खियां......~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   मक्खियां एक लाश के पीछे पड़ी भिनभिनाती मक्खियां। उसके वस्त्रों को नोचकर  निर्वस्त्र करती...! उसके मांस को कुरेदकर लुहुलुहान करती..! सुनसान रास्तों में, बसों में... एक समूह बनाकर, उस अकेली बेचारी लाश को ताकती  ये मक्खियां..! खुशबूदार लाश के रोमकूपों में चढ़कर अपनी बदबूदार काला धब्बा छोड़ती ये मक्खियां..! उसके हाथ , पांव को शक्ति विहीन करके  बाल पकड़कर घसीटती  ये मक्खियां...।  उसके गंतव्य आत्मा को  अपने क्रूरता के चोंच से बार- बार घोपती  ये मक्खियां..! अगले ही दिन अखबारों में... असहाय लाश को चित्त करके  दुष्कर्मी,बलात्कारी शब्द बनकर उभरती.. ये मक्खियां..! असमर्थ हूं मक्खी रोधी दवा बनाने में  ऐसा क्या करूं?? जिससे भाग जाती ये मक्खियां............       ~ मनीष "असमर्थ"

"जल का स्वभाव" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    विश्व जल दिवस की शुभकामनाएं....😊 "जल का  स्वभाव" स्वभाव ही है बहना। ऊर्ध्व से अधो की ओर अवनति से उन्नति की ओर आदि से अंत की ओर शून्य से अनंत की ओर स्वभाव ही है मचलना अनियंत्रित इंद्रिय सा भूडोल अधिकेंद्रीय सा मनो उत्केंद्रीय सा प्रवर्तन नवचंद्रिय सा स्वभाव ही है सराबोर करना जैसे गुरुभक्ति से शिष्य हो जैसे प्रियतमा से प्रिय हो जैसे काया से आत्मीय हो जैसे शब्द से वर्तनी हो स्वभाव ही है लहराना धान के बालियों की तरह नागिन के गतियों की तरह रण में खड्ग चलाइयों की तरह अस्थिर परछाइयों की तरह..... ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

काल्पनिक आनंद से लेकर कलम से उम्मीदें ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    काल्पनिक आनंद से लेकर कलम से उम्मीदें  मेरे पंख होते तो मैं भी किसी विरान सुनसान नृत्यशाला में चला जाता जहां चूं चूं करती चिड़ियों के संगीत को सुन पाता!संगीत में जान डालने वाली धुन मिलाती वीणावत उस झरने के झनझनाहट को सुन पाता! पांव में घुंघरू बांधकर नाचती नृत्यांगना मोर और उसकी सहायिका रंगीन नृत्यांगनाओ तितलियों के नृत्य का आनन्द ले पाता! जिनकी थिरकन रुक ही नहीं रही हैं। तबले पे थाप सा बाघ की दहाड़ बहुत ही आकर्षक लग रहा होता! तेज और धीमी गति से आती हवाएं जब पेड़ों और झाड़ियों से टकराती तो मानो लग रहा होता जैसे कोई संगीतज्ञ बांसुरी की धुन से संगीत में अमृत घोल रहा है! हिरणों की झुण्डों की दौड़ से मानो हारमोनियम के धुन निकल रहे होंते जो संगीत में महत्वपूर्ण योगदान देता है। बंदरों का एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर छलांग लगाना जैसे करताल की धुन अंकुरित हो रही होती। और कोयल, खंजन, पपीहा, टिटहरी आदि पक्षियों की आवाज़ें ऐसे लग रही होतीं जैसे कोई अलाप भर रहा हो। इस हृदय मोहित विकसित संगीत संगम जिसका आनन्द ले पाता!     ...

लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "लक्ष्य प्राप्ति भाव क्रम" संघर्षी तेरे जीवन की दिशा ही दुर्गम होगी।  सुशांत शिला, तेरी सहन शीलता की क्रम होगी।  अति आविष्ट घाम में, मृग मरीचिका की भ्रम होगी। छांव तेरे शत्रु होंगे, हवा भी निर्मम होगी। प्रारब्ध सारा शून्य होगा ,काल भी विषम होंगी। अत धुन तेरी खुद की होगी ,खुद तेरी सरगम होगी।. जब विफलता का भय होगा, रगड़ तेरी नम्र होगी। हृदय तेरा भग्न होगा, शुष्क दृग नम होंगी। उल्लास तेरी ऋण होंगी, नकारात्मक कदम होंगी। प्रज्ज्वल प्रकाश में भी, आंखों में तम होंगी। छिछला जलस्तर भी, चित्त में अगम होगी।। जब दृढ़ तेरा खिन्न होंगा,अदृढ़ता में सम होंगी। अत हार को भी जीत, द्रुतशीत ऊष्मगर्म होगी।  नयन नीलिमा होंगी, नाल में नीलम होगी। तेरी आस कम होंगी, जब लक्ष्यबिंदु चरम होंगी जैसे निर्णय निकट होगी, वैसे युद्ध क्षद्म होंगी। उम्मीदें अनंत होंगी , समय अल्पतम होंगी। करोड़ों उलझनों में , जब तेरी ठोस श्रम होंगी। डगमगाती कोर में,स्वविश्वास भी परम होंगी। परित्यागी तो बन , तेरी कार्य ही आश्रम होगी। तू भागीरथ बन , तेरी गंगा अप्रतिम ह...

कहानी एक ठूंठ की ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    कहानी एक ठूंठ की शीत ऋतु ने मेरे तन पे ऐसे प्रहार किया है कि मेरी पत्तियां सूख गईं और मेरे कोमल शाखाये टूट चुकी हैं। अब लोगों ने अपने शब्दकोश में मेरा नाम पेड़ से बदलकर ठूंठ रख दिया है। मैं एक ठूंठ हूं ,( ठूंठ ने कहा) और आगे की कहानी मेरी ही है... शर्दियों का ऋतु बीत चुका है, अब वसंत का पूर्ण काल आ चुका है।जब बसन्त अपने मोहल्ले में होली मना रहा है तब रंगहीन बनकर मैं उसी के सामने अकेला खड़ा हो गया हूं, जब बसन्त प्रसन्नता के प्रवाह में नृत्य कर रहा है, तब मैं हजारों दबावों का बोझ लेकर, कांतिहीन छवि और सूखे होंठ लेकर उसी के सामने खड़ा हो गया हूं, भला कोई ऐसे करता है? कि किसी के पास लंबे वक्त के बाद सुखद क्षण आए और हम ये सोच कर निराश रहें कि इसका तो अच्छा समय आ गया है! मेरा कब आएगा? लेकिन मै निराश हूं! हताश हूं! मेरे प्रसन्नता के सिर को काटकर इस दुर्दिन सर्द ने अलग कर दिया है। केवल मेरे पास मेरा धड़ ही शेष बचा हुआ है,जिसे ही मैं अपनी इस संसार में अपनी वाजुदगी मानता हूं। मेरा एक सवाल खुद से है कि मैं इस अंजान भीड़ में अकेला ह...

" प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    " प्राकृतिक सम्पदा पे शत्रु का संदेह (रूस यूक्रेन युद्ध)" छिटकती आभा,लाल अंगारा, कोई विस्फोटक है क्या?? या पड़ोस का रहने वाला कोई अपना लोटक है क्या?? शायद सूरज फिसल के इस पार आने वाला है! उस पार से आ रहा है दुश्मन हो सकता हैं ।  सैनिको तैयार हो जाओ, आग का गोला लिया आत्मघाती हमला हो सकता है!!   आग फैलाने की हिम्मत भी कर सकता है! वो उस पार का है, जल रहा है तो जलने दो न! हमे तो अंधेरों से छुटकारा मिलेगा न!! यहां लम्बे समय से अंधेरा कायम हैं...  वो जलेगा तभी उजाला संभव है न! ..... शर्र-शर्र करती आवाज़ तलवार की वेग है क्या?? या फिसलती हवाओं की तेज है क्या?? ये तो हवा है, ये भी पड़ोस के तरफ से ही आ रहा है?? ऐ हवा! अकड़ मत तू अपना रूख बदल दे! वरना मैं तुमसे क्रुद्ध हो जाऊंगा। सांसे नहीं लूंगा। ज़मीन मैंने ही बांटा है।  ये मेरी मिट्टी है, वो उसकी तो ये हवा भी बंट गई है न...!! तेरी हिम्मत कैसे हुई उधर से आने की, शीतलता नहीं चाहिए मुझे तेरी, मैं तपता हुआ ही ठीक हूं न! काला धुआं दिख रहा है, मिसाइल छूट रहे ह...

"नर्मदा के जलधारा की असमंजस्य भाव" ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    "नर्मदा के जलधारा की असमंजस्य भाव" विकास का उल्लास है ये, या वेदना विलास है ये। बहाव का भाव है कि ठगी सी हताश है ये।। नाद या निनाद है ये, शांत या विषाद है ये। क्रोध की ये वेग है, या आंसूओं की तेज है ये।। अलगाव का ये कृंद है, या दो हृदय का द्वंद्व है ये। रीझ है या खीझ है ये, या वियोग की टीस है ये। कंकड़ों की चीर है ये, या तरु की पीर है ये। प्रवाह या प्रवीर है ये, अर्वाचीन या प्राचीन है ये।                              ~ मनीष कुमार "असमर्थ"©®

मेरी चाहत ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "मेरी चाहत"  मेरी चाहत ही बेमिस्ल है, ऐसे ही खिलना चाहता हूं।  हु- ब-हू टिमटिमाता है रात में जो, उसे तोड़ लाना चाहता हूं।.. उसकी एक मुस्कुराहट से ही,टुकड़ों में बिखर जाना चाहता हूं।। मेरी चाहत ही बेढब है, नींद में सपनों से जीतना चाहता हूं। मैं तो अंजुली में रखा कुछ बूंद हूं,या किनारों मे पड़ा कुछ रेत हूं।।,  वो रंग धुरेड़ी सी मैं फागुन सा हूं, वो रंग पंचमी सी मैं मास चैत्र सा हूं। पहली नज़र अंदाज से ही,पल में बह जाना चाहता हूं।। मेरी चाहत ही बेफ़ाइदा है, जवानी में ही ढह जाना चाहता हूं।।  रास्तों में इस ओर कांटों और कंकड़ों के अंबार है। सुदूर है ये मंजिल, तुम्हें आना इस पार है।। ये रास्ते युद्ध से हैं,नुकीले शीशों को वार है। न पहले जीत थी और न अब भी हार है।। उसकी कदमें तो मेरी ओर उठे!! पांव तले कली बनकर बिछ जाना चाहता हूं। मेरी चाहत ही तन्य है, उसकी ओर खिंच जाना चाहता हुं। ओस ने सर्द की कीमत बताई, भाप ने तप्त देह की, सांस ने तन की कीमत बताई,पतझड़ ने पेड़ की  एक बार उसकी तप्त आंखे तो मेरी ओर उठें। भाप-ओस, ...

कलम ने ही तो साथ दिया है ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित    "कलम ने ही तो साथ दिया है", -  थके हारे हुए, हताश होकर कई किलोमीटर चलने के बाद जैसे ही अपने कमरे में घुसा! घना अंधेरा, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। किताबें बिखरी हुईं थीं, ए -4 साइज के पेपर फैले हुए थे जैसे ही धोखे से कागजों में पांव पड़ता, खर्र सी आवाज़ आती , दिल से चित्कार हो उठता कि अरे यार मैने विद्या को पांव मार दी! जैसे तैसे संभलते हुए उन कागजों और किताबों के मेले में अपने दोस्त को ढूंढना शुरू किया। ऐसे लग रहा था जैसे भारी भरकम कुंभ के मेले में मेरा दोस्त कहीं खो गया हैं। व्याकुल क्यों न होऊं आखिर वही तो था जिसके वजह से मैं अंधेरे को हटाने वाला था। कभी किताबों की बंडले हटाता ,तो कभी ए-4 साइज के पेपर तो कभी समाचार पत्रों को हटाता और ढूंढ रहा था कि आखिर मेरा मित्र खो कहां गया है?? सुबह यहीं छोड़के तो गया था। बहुत प्रयास करने के बाद थककर बिस्तर के एक पाया को पकड़कर हाथ पांव फैलाकर उसीपे टिक जाता हूं। और उसी को याद करते हुए फर्श पे ही सो जाता हूं नए नवेले सूरज की चमक जैसे ही मेरे आंखों में अचानक पड़ती हैं जंभाई ल...

तितली रानी से मेरा सवाल ~ मनीष कुमार "असमर्थ"

   Instagram   Quotes   Facebook page प्रकाशित   "तितली रानी सेे मेरा सवाल" तितली रानी तितली रानी, फूल फूल पर जाती क्यों हो? एक फूल ही जन्नत सा था। कुछ रंगों पे गुम जाती क्यों हो? कली-कली पर भौरों के संग,  फूलों पर मंडराती क्यों हो? तुम सुन्दर हो, तुम कोमल हो, पर इतना तुम इतराती क्यों हो? कभी फूल का रस पीती हो। कभी दूर उड़ जाती क्यों हो? कभी आंख से ओझल होकर, अपने पंख दिखाती क्यों हो? कभी मिलेंगे,यहीं मिलेंगे। ऐसा आस जगाती क्यों हो? गेरूए रंग का वेश बनाकर,  घर परिवार बसाती क्यों हो??   चंचलता इतनी है अच्छा! तो फूलों पे रुक जाती क्यों हो? जब तुम्हे पुकारा करता हूं। तो तुम गूंगी बन जाती क्यों हो? तितली रानी तितली रानी, फूल फूल पर जाती क्यों हो? एक फूल जो सूख रहा है। जाने तुम मुरझाती क्यों हो? ~ मनीष कुमार "असमर्थ" ©®